देश के कई राज्य टिडि्डयों के हमले से जूझ रहे हैं। माना जा रहा है कि 25 साल बाद टिडि्डयों का ऐसा हमला हुआ है। दुनिया में यूं देखा जाए तो अफ्रीका, यमन, ओमान, दक्षिणी ईरान टिडि्डयों के प्रजनन के लिए सबसे मुफीद माने जाते हैं। भारत में ये पाकिस्तान के जरिए प्रवेश करती हैं। जहां बलूचिस्तान और खैबर पख्तून प्रमुख ब्रीडिंग क्षेत्र हैं।
कृषिवैज्ञानिकों के अनुसार- वर्तमान में पाकिस्तान टिड्डियों का नया प्रजनन स्थल बन गया है। इसलिए राजस्थान में टिड्डियों के बार-बार होने वाले हमले देखने को मिल रहे हैं। पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करने वाले टिड्डियों के झुंड ने राजस्थान के आधे से अधिक जिलों को 11 अप्रैल तक कवर कर लिया था।
टिड्डियों के हमलों की तीसरी भीषण लहर से गुजर रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान टिड्डियों के हमलों की तीसरी भीषण लहर से गुजर रहा है। डॉन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान सेना ने 5,000 कर्मियों को टिड्डी-रोधी ऑपरेशन में लगाया है इनमेंसे 1,500 कर्मचारी विभिन्न प्रांतों में तैनात किए गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा बीते एक दशक में किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में सबसे खतरनाक टिड्डी दल इस समय अफ्रीका के घास के मैदानों और खेतों को नष्ट कर रहा है। केन्या में पिछले 70 साल का यह सबसे बड़ा टिड्डी दल का हमला है। वहीं, इथोपिया और साेमालिया में 25 साल का सबसे बड़ा अटैक है।
टिड्डी से बचाव का कोई कारगर तरीका नहीं
टिड्डी के ये हमले इस पूरे क्षेत्र में खाद्य संकट पैदा कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दक्षिणी अरब सागर में वर्ष 2018 में बने चक्रवाती तूफान मेकुनू और लुबान, ओमान और यमन से टकराए। इसके चलते हुई मूसलाधार बारिश की वजह से निर्जन रेगिस्तान बड़ी झील में बदल गए।
यहीं भारी मात्रा में इन टिडि्डयों ने प्रजनन कर संख्या करोड़ों में कर ली। अगर ये अनियंत्रित रूप से प्रजनन करें तो एक छोटा दल खुद की मूल संख्या का 20 गुना तक बढ़ा सकता है। और फिर बाद की पीढ़ियों में तेजी से मल्टीप्लाय होता है। यूं टिड्डी से बचाव का कोई कारगर तरीका नहीं है।
किसानों काे सुझाव दिया गया है कि वे रात के समय खेतों पर आवाज करें। बर्तन, सायरन बजाएं। रात में आराम नहीं कर पाने के कारण दिन में ये एक्टिव नहीं हाे पाती हैं। इसके अलावा क्लोरोपाइरीफोज और मेलाथियॉन का छिड़काव करने के लिए कहा गया है।
यूं बनते हैं टिडि्डयों के समूह,चरण दर चरण विकास
- टिडि्डयां अपने जीवन में कई चरणों से होकर गुजरती हैं। अगर वातावरण अनुकूल है, तो वे समूह का रूप लेने लगती हैं। इस क्रम में उनकी शारीरिक क्षमताएं बदलती हैं। माहौल प्रतिकूल होने पर ये क्षमताएं रिवर्स भी हो जाती हैं।
- रेगिस्तानी टिड्डी जब तक अकेली रहती हैं। तब तक वे कम नुकसान पहुंचाती हैं। लेकिन, भारी बारिश और चक्रवाती तूफानाें के बाद टिडि्डयाें के अनुकूल स्थितियां बनने लगती हैं। ऐसे में टिडि्डयां एक जगह जमा होने लगती हैं। जब ये समूह बनने लगता है तो टिडि्डयों का रंग बदलने लगता है। वयस्क होने पर उनका रंग पीला हो जाता है।
- रेगिस्तान में जब हरियाली सूख जाती है। तब थोड़ी बहुत जो हरियाली होती है, वे उस तरफ आने लगती हैं। ऐसे में झुंड बनने लगता है। एक साथ होने पर इनमें बदलाव आने लगते हैं। इनके सेंट्रल नर्वस सिस्टम में सेरेटॉनिन रिलीज होता है,जिससे इनका व्यवहार बदलने लगता है। ये तेजी से विकसित होने लगती हैं।
ब्रीडिंग और फीडिंग
बारिश आते ही इन्हें नमी मिलती है, जोब्रीडिंग के लिए सबसे सही समय होता है। नईपीढ़ी समूह बनाती है। जैसे ही पंख बनते हैं। येसमूह भोजन की तलाश में उड़ते हुए झुंड बन जाते हैं।
आहार: छोटा समूह एक दिन में 35 हजार लोगों लायक खाना खा सकता है
टिडि्डयों का एक छोटा समूह भी एक दिन में 35 हजार लोगों के भोजन के बराबर खाना खा सकता है। एक टिड्डी अपने वजन के बराबर खाना खा सकती है। नेशनल जियोग्राफिक की स्टडी के अनुसार- रेगिस्तानी टिड्डी का समूह 460 वर्ग मील जितना हो सकता है। और आधे वर्ग मील में 4 से 8 करोड़ तक टिडि्डयां हो सकती हैं। 1875 में अमेरिका में 1,98000 वर्गमील क्षेत्र में टिडि्डयों का दल पाया गया था।
आकार: 3 इंच तक लंबी और दो ग्राम वजनी, एक पेपर क्लिप के बराबर
एक टिड्डी का आकार, 0.5 इंच से लेकर तीन इंच के बराबर हो सकता है। इसका जीवन कुछ महीनों का होता है। हालांकि, खतरा इसके समूह के आकार से है, रेगिस्तानी टिड्डी जो सबसे खतरनाक प्रजाति है, वह अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और एशिया में पाई जाती है। शांत अवस्था में भी यह तीस देशों में है। प्लेग (आफत) के समय यह 60 देशों तक फैल सकती है। पृथ्वी के लैंड सरफेस के पांचवें हिस्से के बराबर।
व्यवहार: हवा में लंबे समय रह सकती हैं, नॉन स्टॉप उड़ान भर सकती हैं
टिडि्डयां लंबे समय तक हवा में रह सकती हैं। 1954 में एक दल उत्तर पश्चिमी अफ्रीका से ब्रिटेन तक पहुंच गया था। 1988 में पश्चिमी अफ्रीका से ये कैरेबियन तक पहुंच गईं। यानी करीब पांच हजार किमी की यात्रा और वो भी सिर्फ दस दिन में। टिडि्डयों से जुड़े इतिहास में ये दोनों चौंकाने वाली घटनाएं मानी जाती हैं।
प्रकार: 10 प्रमुख प्रजातियां, इनमें सबसे खतरनाक है रेगिस्तानी टिड्डी
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के अधीन काम कर रहे लोकस्ट (टिड्डी) वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन (एलडब्ल्यूओ) के शोध के मुताबिक दुनिया में टिड्डियों की 10 प्रजातियां सक्रिय हैं। सबसे खतरनाक रेगिस्तानी टिड्डी होती है।
भारत में इसके अलावा प्रवासी टिड्डियां, बॉम्बे टिड्डी और ट्री (वृक्ष) टिड्डी भी देखी गई हैं। रेगिस्तानी टिड्डे पारंपरिक रूप से पश्चिमी अफ्रीका और भारत के बीच के 1.6 करोड़ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में रहते हैं।
रफ्तार: 20 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार, एक दिन में 150 किमी तक सफर
टिड्डे कीड़ों की ही एक प्रजाति है जो बड़े झुंडों में यात्रा करते हैं। ये फसलों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। एक दिन में एक 150 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकते हैं। हालांकि इनकी यह गति हवा की दिशा और रफ्तार पर भी निर्भर करती है। टिड्डी दल फसलों को इस हद तक तबाह कर देता है कि इससे अकाल और भुखमरी की स्थिति पैदा हाे सकती है। दुनिया के कई देशों में इससे अकाल की स्थिति पूर्व में भी पैदा हो चुकी है।
90 हजार हेक्टेयर में नुकसान, सर्वाधिक प्रभावित राजस्थान
भारत में टिड्डी दल के हमले से सर्वाधिक प्रभावित राज्य राजस्थान है। यहां अब तक 90 हजार हेेक्टेयर बागवानी और सब्जीवाली फसल के प्रभावित होने का अनुमान है। इसके अलावा गुजरात के 52 में 16 जिले व उत्तर प्रदेश के 17 जिले इससे अब तक प्रभावित हुए हैं।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कई हिस्से इनके हमले झेल रहे हैं। टिड्डी नियंत्रण संगठन के अनुसार भारत में इतनी बड़ी संख्या में टिड्डी दल का हमला 1993 में हुआ था।
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