Skip to main content

हमें ये समय अपनी जीवनशैली को सही करने के लिए ही मिला है, सात्विक जीवनशैली अपनाने से भी बहुत कुछ ठीक हो जाएगा

इस वैश्विक महामारी ने हमें जीवन जीने का नया तरीका सिखा दिया है। हमें वह सब सिखा दिया जो हम करना चाहते थे और जिसके लिए हम कहते थे कि हमारे पास समय नहीं है। जैसे जो कुकिंग नहीं करते थे, उन्हें समय मिला खाना बनाना सीखने के लिए। हमारे पास धन इतना आ गया तो हमने सोचा कि खाना बनाने की क्या जरूरत है, बाजार से खाना ले आते थे या खाना बनाने वाले को रख लेते थे।

कहा भी जाता है जैसा अन्न, वैसा मन। अभी हमें समय मिला है कि हम इसका प्रयोग कर देखें। जब आप खाना बनाते हैं तो आप अपने रसोईघर में परमात्मा को याद करने वाले गीत चलाइए ताकि आपके घर में जो भी भोजन बन रहा है या फिर जो पानी रखा है, वह उच्च और सकारात्मक ऊर्जा वाले शब्दों को सोख सके।

उस भोजन को जो-जो खाएगा, उसके लिए वैसे ही सकारात्मक ऊर्जा वाली बातें सोचना बहुत आसान हो जाएगा। इसलिए आप अपनी लाइफ स्टाइल में कुकिंग को शामिल कर सकते हैं, जिसका आपको अभी समय भी मिला है। यह वायरस हममें से बहुत से लोगों को सात्विकता की तरफ ले जा रहा है। हममें से कई लोग इस समय तामसिकता से दूर हो गए हैं।

जैसे अभी बाहर जाकर तामसिक खाना नहीं खा पा रहे हैं। सात्विक भोजन खाने से आधे से ज्यादा चीजें तो इसी समय ठीक हो जाएंगी। आज एक वायरस से हमें इतना डर लग रहा है कि हम हर समय उसी के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन, हम कर्म कौन-सा कर रहे थे? सिर्फ एक बात हमारे आगे के सब कर्मों को ठीक कर देगी। हमें उस बात का भी कभी-कभी शुक्रिया कर देना चाहिए।

यह हमें बहुत कुछ सिखाकर गई है। और बहुत कुछ हमने जीवनभर के लिए सीख लिया है। दो महीने बाद, चार महीने बाद कोरोनावायरस सबको भूल जाएगा। जो कहते थे कि सोच रहा हूं कि सात्विकता को जीवन में अपना लूं, तो उनके लिए यह सबसे महत्वपूर्ण समय आ गया है।

हमने तो ब्रह्माकुमारी संस्था में इस सात्विकता को अपनाने के लिए प्रयोग किए हैं। जैसे हमने सात्विक भोजन ही करने का फैसला लिया। पहले दिन हमने सोचा था कि ये हमसे होगा कि नहीं होगा। लेकिन फिर मैंने सोचा कि प्रयोग करते हैं क्योंकि इसमें फायदा भी बहुत दिख रहा था। आज हममें से किसी को दस साल हो गए हैं और किसी-किसी को तो पचास साल तक हो गए हैं।

हम सभी पूरे विश्व का चक्कर लगाकर आ गए। सभी तरह की परिस्थितियों में रह चुके हैं। बाहर हमें कभी-कभी एक-एक हफ्ता तक कुछ नहीं मिलता था खाने को। हम फल, सब्जी, दूध आदि खाकर रह लेते थे। लेकिन बाहर कोई तामसिक भोजन नहीं लेते थे। हमने जो एक बार प्रतिज्ञा की फिर कभी भी वो नहीं टूटी।

खाने समेत विचारों की, कर्मों की सात्विकता लाने की कोशिश शुरू करनी चाहिए। इस समय यह मौका मिला है कि हम शुरुआत करें। उदाहरण के लिए हमारा खाना बनाना और खाना दोनों घर में ही होने लगा है। इससे हमारे जीवन में बहुत परिवर्तन आएगा।

इस समय यह हो सकता है कि जब हम खाना खाने बैठें तो पूरी फैमिली इकट्‌ठा बैठकर खाए और प्रतिज्ञा करे कि खाना खाते समय हमें ना तो मोबाइल देखना है और न ही टीवी ऑन करना हैं। ये अनिवार्य हो। पहले परमात्मा को याद कीजिए, मन में सकारात्मक संकल्प कीजिए कि यह भोजन तन और मन के स्वास्थ के लिए अच्छा है।

फिर भोजन करना शुरू कीजिए। क्योंकि वह भोजन हमारे मन की स्थिति पर असर करता है। अगर सभी लोग इकट्‌ठे मिलकर ऐसा करेंगे तो ये संस्कार पूरे परिवार के सभी लोग सीख जाएंगे। और अगर सभी बोलकर करेंगे तो शायद सब लोगों को याद हो जाएगा, फिर थोड़े दिन के बाद तो मन में भी कर सकते हैं। क्योंकि अभी हमारी ये आदत बन रही है।

रात को सोने के समय कोई भी नकारात्मक कंटेंट जैसे कि कोई मूवी, काम से संबंधित चीजें नहीं होनी चाहिए। क्योंकि रात को सोने से पहले जो कंटेंट अंदर जाता है, वह सारी रात काम करता है। अधिकतर लोग रात को इसी कारण से ठीक से सो नहीं पाते हैं। हमें ये समय अपनी जीवनशैली को सही करने के लिए ही मिला है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
बीके शिवानी, ब्रह्मकुमारी


https://ift.tt/2Zm5NEZ

Comments

Popular Posts

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे। दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं। यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था। इसके त...