Skip to main content

असली कहानी यह है कि अमेरिका और चीन तलाक की तरफ बढ़ रहे हैं, जिसके कागजातों पर लिखा होगा, ‘कभी न खत्म होने वाले मतभेद’

ट्रम्प के फन हाउस, माफ कीजिएगा, व्हाइट हाउस के बारे में जॉन बॉल्टन की किताब में मेरी पसंदीदा कहानी वह है, जिसमें राष्ट्रपति ट्रम्प चीन के नेता से ज्यादा अमेरिकी कृषि उत्पाद खरीदने की अपील कर रहे थे, ताकि किसान ट्रम्प को वोट दें और वे फिर चुने जाएं। डोनाल्ड, गिड़गिड़ाना बंद कीजिए। शी जिनपिंग और व्लादिमिर पुतिन दोनों ने आपको वोट देने का फैसला कर लिया है। वे जानते हैं कि जबतक आप राष्ट्रपति हैं, अमेरिका में खलबली रहेगी।

शी के लिए इसका मतलब है कि अमेरिका कमजोर आर्थिक प्रतिद्वंद्वी रहेगा और पुतिन के लिए इसका मतलब है कि उनके लोगों के लिए अमेरिका कम आकर्षक लोकतांत्रिक मॉडल रहेगा। वे ये भी जानते हैं कि जब तक आप राष्ट्रपति हैं, अमेरिका कभी भी उनके खिलाफ सहयोगियों का समूह नहीं बना पाएगा, जिससे चीन अपने व्यापार और मानवाधिकारों मसलों के कारण और रूस यूक्रेन और सीरिया मामले के कारण डरता है।

ये मैं नहीं कहता। जेनेवा में चीनी व्यापार मध्यस्थ रहे झू शिआयोमिंग ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘अगर बाइडेन जीतते हैं तो यह चीन के लिए खतरनाक होगा क्योंकि वे सहयोगियों के साथ चीन के खिलाफ काम करेंगे, जबकि ट्रम्प अमेरिका के सहयोगियों को बर्बाद कर रहे हैं।’ अगर चीन शायद ऐसा सोचता है कि उसे डरने की जरूरत नहीं है और उसे ट्रम्प की जीत से ज्यादा फायदा नहीं है, तो अमेरिका-चीन की असली कहानी बीजिंग के लिए चिंताजनक हो सकती है।

असली कहानी यह है कि 1989 के तियानानमेन स्क्वेयर के बाद से चीन की अमेरिका में अब तक की सबसे कमजोर स्थिति है। असली कहानी यह है कि इस बार अमेरिका से कुछ और अनाज और बोईंग खरीदने से बीजिंग की समस्याएं हल नहीं होंगी।

चीनियों को खुद से जो सवाल पूछना चाहिए, वह यह नहीं है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, बल्कि उन्हें पूछना चाहिए, ‘चीन में किसने अमेरिका को खो दिया।’ क्योंकि असली कहानी यह है कि अमेरिका और चीन तलाक की तरफ बढ़ रहे हैं। तलाक के कागजातों पर बस इतना लिखा होगा, ‘कभी न खत्म होने वाले मतभेद’।

वे 40 साल एक दंपति, दो तंत्र की तरह रहने के बाद तलाक ले रहे हैं क्योंकि चीन का प्रदर्शन बुरी तरह से महत्वाकांक्षी रहा है और अमेरिका का बुरी तरह से खराब।

अमेरिकी अब भी व्यापार करेंगे, कूटनीतिक स्तर पर जुड़ेंगे, अब भी पर्यटक आएंगे-जाएंगे, अमेरिकी बिजनेस अब भी चीन के बड़े मार्केंट में काम करना चाहेंगे। लेकिन अब से यह सब सीमा में होगा, अवसरों पर ज्यादा प्रतिबंध होंगे और रिश्ते को ज्यादा शक की निगाह से देखा जाएगा और यह डर रहेगा कि कभी भी फूट पड़ सकती है।

इसकी तुलना आखिरी 40 वर्षों से करें तो यह तलाक जैसा ही लगेगा। ग्रेटर चाइना के लिए एपीसीओ वर्ल्डवाइड के अध्यक्ष जिम मैक्ग्रेगर कहते हैं, ‘दोनों पक्ष कह रहे हैं, अब बहुत हो गया।’ खुद ट्रम्प ने हाल ही में ट्वीट किया जिसमें ‘चीन से पूरी तरह अलग होने’ के विकल्प की बात लिखी थी।

लेकिन दोनों पक्षों का बराबर दोष नहीं है। शी के युग में अमेरिका-चीन रिश्तों में गिरावट की शुरुआत 2012 में हुई। जबसे शी ने सत्ता संभाली चीन में काम कर रहे अमेरिकी पत्रकारों की पहुंच कम कर दी गई। चीन दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत दिखाने में आक्रामक होने लगा। वह 2025 तक मुख्य उद्योगों पर हावी होने के लिए अपने हाई-टेक स्टार्टअप्स को नियम विरुद्ध फायदे पहुंचाने लगा।

वह हॉन्गकॉन्ग की आजादी को कम करने के लिए नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर रहा है। वह ताइवान को और धमकाने लगा है। उसने भारत के प्रति आक्रामक रवैया अपनाया हुआ है। उसने झिंनजिआंग में उइगर मुस्लिमों की नजरबंदी बढ़ा दी है। उसने उन देशों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया है जो वुहान से कोरोना के फैलने की जांच की मांग कर रहे हैं।

लेकिन अगर चीन अधिक महत्वाकांक्षी हुआ है, तो अमेरिका का प्रदर्शन लगातार खराब रहा है। उसने अपनी क्षमता के मुताबिक सुविधाओं, शिक्षा, वैज्ञानिक शोध, अप्रवासन पर निवेश करना कम कर दिया है। उत्पादक निवेशों को बढ़ाने और ज्यादा जोखिम को रोकने के लिए सही नियम बनाना कम कर दिया है।

अमेरिका जिस मामले में चीन से आगे था, उसका फायदा उठाना भी बंद कर दिया है। वह यह कि अमेरिका के पास ऐसे सहयोगी हैं जो उसकी तरह सोचते हैं और चीन के पास सिर्फ ग्राहक हैं, जो उसकी नाराजगी से डरते हैं।

अगर अमेरिका के सहयोगी उसके साथ आ जाएं तो मिलकर व्यापार के नए नियमों को स्वीकारने और कोविड-19 तथा अन्य कई मुद्दों के मामले में चीन को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन ट्रम्प ने ऐसा करने से इनकार कर हर चीज को द्विपक्षीय डील या शी के साथ लड़ाई बना दिया।

आज के रिश्तों का सार बताते हुए मैकग्रेगर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि अब चीनी, अमेरिका को गंभीरता से लेते हैं। वे हमें खुद को नुकसान पहुंचाते देख खुश हैं। हमें अभी कुछ करना होगा।’ और अपने सहयोगियों को साथ लाना होगा। चीन सिर्फ एक चीज का सम्मान करता है: फायदा। जो आज हमारे पास बहुत कम है और चीन के पास बहुत ज्यादा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


https://ift.tt/3g9Dr7t

Comments

Popular Posts

कांग्रेस में शामिल 6 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए आज हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करेगी बसपा; भाजपा विधायक की याचिका पर भी होगी सुनवाई

बहुजन समाज पार्टी बुधवार को राजस्थान उच्च न्यायालय में बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए सभी 6 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग को लेकर याचिका दायर करेगी। इसके साथ ही भाजपा विधायक मदन दिलावर की याचिका पर भी सुनवाई की जाएगी। जिसमें उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनकी याचिका को खारिज करने और बसपा के विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ अपील की है। मामले की सुनवाई जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल की एकलपीठ करेगी। कोर्ट ने सोमवार को कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष मामले में 24 जुलाई को ही आदेश पारित करते हुए याचिका खारिज कर दी गई थी, लिहाजा उसके कोई मायने नहीं। भाजपा नई याचिका दायर सकती है। अब मदन दिलावर द्वारा विधानसभा अध्यक्ष द्वारा याचिका को खारिज करने के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी गई है। साथ ही बसपा के 6 विधायकों के विलय के खिलाफ भी फिर से याचिका लगाई गई है। बसपा राष्ट्रीय पार्टी, अध्यक्ष की सहमति के बिना विलय संभव नहीं बसपा प्रदेशाध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने कहा कि पार्टी महासचिव ने व्हिप जारी किया हुआ है, जिसमें कांग्रेस के खिलाफ वोट करने के आदेश हैं। अगर फ्लोर टेस्ट मैं व्हिप का उ...

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...