Skip to main content

ओडिशा की चिल्का लेक जहां 100 से ज्यादा गांवों के डेढ़ लाख लोगों की जिंदगी मछली पर टिकी है, जाति चाहे कोई भी हो, सब मछुआरे हैं

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ऑक्स-बो लेक (झील) चिल्का के बीचबसे करीब 100 से अधिक गांवों के डेढ़ लाख लोगों की आजीविका मछली पर ही टिकी है। जाति कोई भी हो, यहां सब मछुआरे ही हैं। कोरोनाकाल में यहां की मछलियों की डिमांड कम हो गई है। सिर्फ 10% सप्लाई ही कोलकाता या दूसरे जगहों पर हो पा रही हैं।

चिल्का लेक में 160 से भी ज्यादा प्रकार की मछलियों मौजूद हैं। बोटिंग के साथ-साथ यहां फिशिंग करने की सुविधा भी है।

यहां इरावदी डॉल्फिनसबसे ज्यादा पाई जाती हैं

70 किलोमीटर लंबी और 30 किमी चौड़ी इस झील का पानी दिसंबर से जून तक खारा रहता है, लेकिनबरसात में मीठा हो जाता है। यहां पर कई लोग सेव चिल्का की टोपी पहने दिखाई दे जाते हैं, जो यहां की बायोडायवर्सिटी,प्रवासी पक्षियों और मशहूर डॉल्फिन को बचाने के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। इरावदी प्रजाति की डॉल्फिन यहांसबसे अधिक संख्या में पाई जाती हैं।

चिल्का के पास बसे करीब 100 गांवों के लिए मछली ही आय का मुख्य सोर्स है, कोरोना की वजह से इसकी डिमांड कम हो गई है।

चिल्का झील अपनी खूबसूरती के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं। यहां 6 विशाल द्वीप हैं- परीकुड़, फूलबाड़ी, बेराहपुरा, नुआपारा, नलबाड़ा और तम्पारा। येसभी पुरी जिले के कृष्णा प्रसाद राजस्व क्षेत्र का हिस्सा हैं। झील का उत्तरी किनारा खोर्दा जिले और पश्चिमी तट गंजाम जिले से लगता है।

एमएल चिल्कारानी दिन में 4 फेरे लगाती हैं, जिसमें बैठकर लोग नौका विहार का आनंद लेते हैं।

कोरोना की वजह से व्यापार को घाटा

आलूपटना गांव में करीब 5 सौमछुआरे हैं। गांव के ही अरुप कुमार जेना बताते हैं कि कोरोना के पहले हम 15 किलो तक मछलियां पकड़ लेते थे। आज 4-5 किलो ही निकाल पाते हैं कि क्योंकि अब न तो ग्राहक हैं न बाजार हैं और न ही सही रेट मिल पा रहा है।पहले यहां आने वाले टूरिस्ट से भी कमाई होती थी,वह भी मार्च से बंद है।

चिल्का में करीब 200 टूरिस्ट बोट हैं, जो कोरोना की वजह से बीते चार महीने से बंद है।

वे बताते हैं मछली और टूरिस्ट से रोजाना करीब 15 सौ से 2 हजार रुपए तककी कमाई हो जाती थी, जोअब 400-500 पर टिक गई है। टूरिस्ट सीजन में यहां साढ़े तीन घंटे के नौका विहार का रेट 1700 रुपए और एक घंटे का 800 रुपए होता है।

यहां 200 टूरिस्ट बोट हैं जो बीते 4 महीनोंसे सब बंद हैं। सातपाड़ा से कृष्णाप्रसाद के लिए फेरी सर्विस भी है। एमएल चिल्कारानी दिन में 4 फेरे लगाती हैं। ब्रह्मपुर, महिषि जैसे गांवों के लिएनाव भी चलती हैं।

गर्मी के मौसम में यहां भारी संख्या में टूरिस्ट आते हैं, उनके लिए यह एक फेवरेट डेस्टिनेशन है।

झील के बीच में कृष्णाप्रसाद ब्लॉक है। इसमें 15 पंचायतें आती हैं। यहीं सातपाड़ा है, जो 7 छोटे-छोटे टोले से बना है। चिल्का से तीन जिले की बाउंड्री लगती है- गंजम, खुर्दा और पुरी। इस झील के पूर्व में बंगाल की खाड़ी है।

कंटेंट - शशिभूषण,फोटो क्रेडिट - संदीप नाग।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
चिल्का झील दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है जो ओडिशा के पुरी जिले में हैं। यहां नौका विहार का लुफ्त उठाने के लिए देश-विदेश से सैलानी आते हैं।


https://ift.tt/3g4cUbO

Comments

Popular Posts

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे। दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं। यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था। इसके त...