Skip to main content

छह माह की मेहनत, तब एक एकड़ में 12 क्विंटल धान, बचते हैं सिर्फ 9500 रुपए

धान के कटोरे के रूप में मशहूर छत्तीसगढ़ में किसानों को 2500 रुपए प्रति क्विंटल मूल्य मिल रहा है, फिर भी लागत के मुकाबले एक एकड़ में सिर्फ 9500 रुपए ही मुनाफा मिल रहा है। इसमें 6 महीने तक किसान और उसके परिवार की मेहनत का मूल्य नहीं जुड़ा है। यदि प्रतिदिन 100 रुपए मजदूरी जोड़ें तो किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता। सिर्फ धान ही नहीं, बल्कि अन्य फसलों में भी श्रम और लागत के मुकाबले मुनाफा बेहद कम है। सोयाबीन की लागत कम होने के कारण रकबा घटकर आधे से भी कम हो गया है।

क्या है जमीनी हकीकत ?

  • छत्तीसगढ़ में एक एकड़ में औसत 12 क्विंटल धान का उत्पादन होता है।
  • केंद्र से समर्थन मूल्य का 1815 रुपए मिलता है और राज्य सरकार राजीव किसान न्याय योजना के तहत 685 रुपए धान का अलग से दे रही है।
  • इस तरह किसान को 2500 रुपए प्रति क्विंटल धान के मिलते हैं। इस हिसाब से 12 क्विंटल के 30 हजार रुपए मिलते हैं।
  • इसमें किसान की कुल लागत 20500 रुपए लगती है। इस तरह प्रति एकड़ 9500 रुपए ही बचता है। हालांकि किसानों की मेहनत और जमीन का किराया या लीज रेंट को इसमें नहीं जोड़ा गया है।
  • यदि 100 रुपए रोजी के हिसाब से 6 महीने का मूल्य जोड़ें तो 18 हजार रुपए होता है।
  • इसे स्वामीनाथन आयोग ने भी शामिल नहीं किया है। यानी कुल लागत और श्रम के हिसाब से किसानों को कोई लाभ नहीं है।

ये आंकड़े अच्छी परिस्थिति के लिए हैं। जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा नहीं है, वहां प्रति एकड़ 1000 रुपए की सिंचाई पर भी किसान खर्च करते हैं। बस्तर में 6 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन होता है, जबकि धमतरी, राजिम में 20 क्विंटल तक भी उत्पादन होता है। हालांकि 5 फीसदी क्षेत्र में ही ऐसा उत्पादन होता है।

छत्तीसगढ़ में पलायन की बड़ी वजह भी यही
छत्तीसगढ़ में 80 फीसदी छोटे किसान हैं, जिनके पास एक हेक्टेयर यानी ढाई एकड़ की औसत जमीन है। इसलिए ज्यादातर किसान व उनका परिवार पहले बड़े किसानों के यहां मजदूरी करते हैं। उसके बाद अपना खेत बोते हैं। इसमें भी बड़ी संख्या में लोग पलायन कर जाते हैं।

एक्सपर्ट्स व्यू - राष्ट्रीय औसत के मुताबिक समर्थन मूल्य तय किया जाता है
"पिछले दस सालों में एक सरकारी कर्मचारी के वेतन में वृद्धि और फसल के समर्थन मूल्य में वृद्धि की तुलना करें तो बहुत बड़ा अंतर नजर आता है। किसान जितनी मेहनत करते हैं, उसका मूल्य ही नहीं मिलता। हर राज्य और अलग-अलग क्षेत्र में लागत अलग है, जबकि राष्ट्रीय औसत के मुताबिक समर्थन मूल्य तय किया जाता है। इस पर बदलाव बेहद जरूरी है।"
-डॉ. संकेत ठाकुर, कृषि वैज्ञानिक



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
छत्तीसगढ़ में एक एकड़ में औसत 12 क्विंटल धान का उत्पादन होता है।


https://ift.tt/38JNQol

Comments

Popular Posts

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे। दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं। यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था। इसके त...