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US चाहता है कि भारत की सैन्य ताकत ऐसी हो ताकि वह चीन का अकेले मुकाबला कर सके, इसमें भी अमेरिका का फायदा

‘भारत हमेशा से ताकत दिखाने से कतराता रहा है, जबकि अमेरिका की चाहत रही है कि भारत खुले तौर पर ताकत का इस्तेमाल करे। वह चाहता है कि भारत की सैन्य शक्ति ऐसी हो ताकि वह चीन का अकेले मुकाबला कर सके। दरअसल, भारत से दोस्ती अमेरिका को चीन के खिलाफ मददगार साबित होगी। लेकिन अमेरिका वैसे नहीं चलेगा, जैसे भारत चाहेगा।’ यह कहना है अमेरिका और श्रीलंका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी का। हक्कानी फिलहाल वॉशिंगटन में रहते हैं। यहां उनकी भास्कर से बातचीत के प्रमुख अंश :

बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। भारतीय उपमहाद्वीप पर असर होगा?
यह सोचना गलत है कि बाइडेन ओबामा नीति को आगे बढ़ाएंगे। ओबामा की तुलना में बाइडेन बीच का रास्ता ज्यादा निकालकर चलते हैं। ओबामा की विदेश नीति ईरान-अफगानिस्तान में युद्ध के खिलाफ थी। जबकि बाइडेन उपराष्ट्रपति होते हुए भी ओबामा से अलग राय रखते थे। बाइडेन कूटनीति के पक्षधर तो हैं, लेकिन उन्हें सैन्य ताकत का उपयोग करने से परहेज नहीं है। जहां तक भारत और एशिया का ताल्लुक है, ओबामा के समय में ही अमेरिका का झुकाव भारत की तरफ हो गया था। बाइडेन के कार्यकाल में भी यह नीति ऐसे ही बढ़ेगी। चीन के साथ अमेरिका की विश्व नेतृत्व की स्पर्धा रहेगी। चीन मनमानी करता रहेगा। अमेरिका तमाम खामियों के बावजूद कानून संगत वैश्विक व्यवस्था को स्थापित करने की कोशिश करता रहेगा। ट्रम्प और बाइडेन प्रशासन में बड़ा अंतर यह रहेगा कि बाइडेन राज में बड़बोलापन खत्म हो जाएगा।
भविष्य में अमेरिका के भारत के साथ रिश्ते कैसे रह सकते हैं?
अमेरिका में हमेशा से आम राय रही है कि भारत के साथ मैत्री उसके हित में है। पिछले कुछ दशकों में अमेरिका में भारत के प्रति मैत्रीपूर्ण भाव बढ़ा है। इसके बावजूद दोनों देशों के रिश्तों का दारोमदार पहले की तरह भारत पर ज्यादा रहेगा। भारत हमेशा से ताकत के प्रदर्शन से कतराता रहा है जबकि अमेरिका की चाहत रही है कि भारत ताकत का खुले तौर पर इस्तेमाल करे। अमेरिका आगे भी यही चाहता रहेगा। अमेरिका चाहता है कि भारत की सैन्य ताकत ऐसी हो ताकि वह चीन का अकेले मुकाबला कर सके। लेकिन भारत की व्यवस्था ऐसी रही है कि भारत सैन्य आधुनिकीकरण में पिछड़ता ही चला गया। सुरक्षा के मसले पर फैसला न कर पाने की नीति अमेरिका जैसे देशों को समझ नहीं आती। बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन इस विचार को बिलकुल नहीं मानेगा, क्योंकि भारत से दोस्ती अमेरिका को चीन के खिलाफ मददगार साबित होगी। लेकिन भारत की मदद के बदले अमेरिका अपने हित देखेगा। एक बात तो तय है कि अमेरिका में रिपब्लिकन हों या डेमोक्रेट, सब चाहते हैं कि चीन की तुलना में भारत सशक्त बने।
इन सूरत-ए-हाल का असर भारत-पाकिस्तान रिश्ते पर क्या होगा
भारत और पाकिस्तान पड़ोसी हैं और रहेंगे। ये हमेशा लड़ते नहीं रह सकते। सवाल यह है कि यह लड़ाई जल्दी सुलझेगी या देर लगेगी। भारत से कॉम्पटीशन ने पाकिस्तान को चीन के करीब लाकर खड़ा कर दिया है लेकिन चीन से रिश्तों की कीमत चुकानी पड़ती है। पाकिस्तान इसके लिए शायद तैयार नहीं होगा। इसलिए एक तरफ तो पाकिस्तान को चीन के साथ कीमत पर समझौते करने होंगे, वहीं दूसरी तरफ जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को खत्म नहीं कर देता भारत के साथ उसके रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते।
कोविड का समसामयिक संबंधों पर क्या असर हो रहा है?
कोविड के बाद की दुनिया खास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया पर गहरा असर पड़ा है। इस इलाके के हर देश को नुकसान हुआ है। इसका असर नीतियों पर पड़ना चाहिए। जैसे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था हमेशा नाजुक रही है। भारत को सैन्य खर्च बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी क्योंकि भारत का सैन्य खर्च आवश्यकता से कम रहा है। अगर भारत की अर्थव्यवस्था सिकुड़ती है, फॉरेक्स रिजर्व घटने लगते हैं तो भारत भी अपने खर्चे बढ़ाएगा। यह कैसे होगा, यह बड़ा सवाल है।



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हुसैन हक्कानी पाकिस्तान के सीनियर डिप्लोमैट हैं। वे अमेरिका और श्रीलंका में एम्बेसडर रह चुके हैं। - फाइल


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