Skip to main content

रूस और बेलारूस की जनता तानाशाह शासकों से ऊब रही, विपक्षी नेता को जहर देने के मामले में पुतिन पर सवाल

पूर्व सोवियत संघ के दो प्रमुख देशों रूस और बेलारूस में वर्षों से सत्ता में जमे तानाशाहों के खिलाफ असंतोष उबल रहा है। बेलारूस में हजारों लोगों ने सड़कों पर आकर चुनावी धांधली के खिलाफ आवाज उठाई है। बेलारूस की स्थिति ने 1989 की बगावत की याद दिलाई है। रूसी शहर खबरोवस्क में कई सप्ताह से हजारों लोग स्थानीय गर्वनर की गिरफ्तारी और केंद्र सरकार की मनमानी का विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन भयभीत लगते हैं। उनके सबसे लोकप्रिय प्रतिद्वंद्वी अलेक्सी नावाल्नी बर्लिन, जर्मनी के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। उन्हें जहर दिया गया है।

अपने समर्थकों को संरक्षण देकर टिके हुए हैं

पुतिन और मिंस्क, बेलारूस में एलेक्जेंडर लुकाशेंको प्रोपेगंडा, दमन और अपने समर्थकों को संरक्षण देकर टिके हुए हैं। पुतिन के सभी हथकंडे पुराने पड़ चुके हैं। दोनों नेता सोवियत संघ के पतन से पैदा हुई अराजकता से राहत दिलाने का वादा कर सत्ता में आए हैं। लुकाशेंको ने सोवियत संघ जैसी स्थिति जारी रहने की बात कही थी। पुतिन के सत्ता संभालने के बाद किस्मत से तेल के मूल्य बढ़ गए। सामान्य लोगों को फायदा तो हुआ, लेकिन उनके समर्थकों की चांदी रही।

अर्थव्यवस्था को आगे नहीं ले जा सके पुतिन, लुकाशेंको

दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर डालिए। बेलारूस पूर्व सोवियत संघ की तर्ज पर चल रहा है। अधिकतर निर्यात पोटाश और रूस से रिफाइन किए गए पेट्रोलियम पदार्थों का होता है। वहीं रूस की अर्थव्यवस्था में अधिक खुलापन है। लेकिन, इंडस्ट्री और फाइनेंस सेक्टर पर पुतिन के भरोसेमंद पूंजीपतियों का कब्जा है। इस कारण प्रतिस्पर्धा और गतिशीलता का अभाव है। पुतिन पेट्रो पदार्थों से अलग हटकर कुछ नहीं कर पाए हैं। इसलिए तेल की कीमतों में गिरावट और कोरोना वायरस के प्रकोप की दोहरी मार ने अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है। तंगी के दौर में उनके पास राष्ट्रवाद और पुराने दिनों की याद दिलाने का झुनझुना भर है।

पुतिन ने पुराने गौरव का काल्पनिक ढोल पीट रखा है

पिछले दो दशक से पुतिन ने जारशाही और सोवियत संघ के पुराने गौरव का काल्पनिक ढोल पीट रखा है। उनका शासन गलत सूचनाएं फैलाने में माहिर है। उसने इंटरनेट पर ट्रोलर्स की फैक्ट्री खोल रखी है। एक टिप्पणीकार का कहना है, पुतिन ने मीडिया में ऐसा माहौल रचा है, जहां कुछ भी सच नहीं है और सब कुछ संभव है। फिर भी, पुतिन नावाल्नी के सामने थके हुए लगते हैं। नावाल्नी के लोकप्रिय यूट्यूब वीडियो लोगों के बीच हताशा की झलक दिखाते हैं। उनमें पुतिन सरकार के भ्रष्टाचार का चित्रण गहरी रिसर्च के साथ किया गया है।

दोनों नेताओं के उत्तराधिकारी भी नापसंद

आर्थिक और सांस्कृतिक पुनर्जीवन में नाकाम पुतिन और लुकाशेंको अपनी सरकार को नया स्वरूप नहीं दे पाए हैं। उनका कोई स्वीकार्य उत्तराधिकारी नहीं है। लुकाशेंको ने अभी हाल में अपने 15 साल के बेटे को फौजी पोशाक में पेश किया है। पुतिन आसानी से अपना उत्तराधिकारी तैयार नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इससे उनके गुट में अंसतोष पैदा होगा।

उन्होंने इस साल 2036 तक स्वयं सत्ता में रहने के लिए संविधान में बदलाव किया है। उस समय उनकी आयु 84 वर्ष हो जाएगी। दूसरी ओर नावाल्नी 13 सितंबर को होने वाले क्षेत्रीय चुनावों के लिए विपक्षी मतों को एकजुट करने की कोशिश में लगे थे। नावाल्नी को जहर देने की घटना से साफ है कि तानाशाहों के पास जब कोई नया हथकंडा नहीं होता तो वे हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।

पुतिन ने रूस में माफिया जैसा साम्राज्य कायम कर रखा है

रूस में व्लीदीमीर पुतिन ने माफिया जैसे शासन का निर्माण किया है। सरकार नावाल्नी को जर्मनी भेजने में आनाकानी करती रही। उन्हें जहर देने की जांच कराने से भी इनकार कर दिया है। पुतिन ने नावाल्नी काे अदालतों के माध्यम से कई बार कैद रखा है। उन्हें चुनाव में हिस्सा नहीं लेने दिया गया। दोनों नेताओं ने मीडिया को पालतू बनाकर अपनी छवि उजली रखी है। लुकाशेंको पुराने जमाने के तानाशाह जैसा बर्ताव करते हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह एक हेलीकॉप्टर में घूमते और एके-47 गन दिखाते हुए अपना वीडियो जारी करवाया है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
रूस में व्लीदीमीर पुतिन ने माफिया जैसे शासन का निर्माण किया है।


https://ift.tt/3gzF9Pf

Comments

Popular Posts

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे। दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं। यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था। इसके त...