Skip to main content

दवा की तय कीमत से ज्यादा वसूलने पर भी लाइसेंस रद्द करना मुश्किल, सिर्फ जुर्माना वसूल सकती हैं एजेंसियां

नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की ओर से दवा की कीमत तय करने के बाद भी यदि दवा कंपनियां इससे ज्यादा कीमत वसूल करती है तो इन कंपनियों का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता। ड्रग्स कंसलटेटिव कमेटी ने कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे लाइसेंस रद्द किया जा सके।

डीटीएबी ने भी लाइसेंस रद्द करने से इनकार किया था

इससे पहले ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) ने भी ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने से इनकार कर दिया था। संसद की स्थाई समिति ने अपनी 54वीं रिपोर्ट में कहा है कि दवा कंपनी यदि तय कीमत से ज्यादा पैसा वसूल करती हैं, या अपनी मर्जी से दवा की कीमत तय करती है तो इनसे ब्याज सहित जुर्माना वसूला जाए। जुर्माना नहीं देने पर कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पर विचार करें। स्वास्थ्य मंत्रालय से भी कहा है यदि जरुरत पड़े तो ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में जरुरी बदलाव करें।

मनमाने तरीके से कीमत बढ़ाने वाली कंपनियों से जुर्माना वसूला जाए

एनपीपीए का कहना है कि कीमत तय करने के बाद भी जिन कंपनियों ने दवा की कीमत बढ़ाई, ऐसी कंपनियों से जुर्माना वसूल करने के लिए 2083 नोटिस भेजे गए हैं। मार्च-2020 तक छह हजार 406 करोड़ रुपए से ज्यादा का जुर्माना किया गया है। लेकिन, सिर्फ 960 करोड़ रुपए की वसूली हो पाई है। वहीं चार हजार 33 करोड़ रुपए का मामला अदालत में चल रहा है। एनपीपीए के पास सिर्फ जुर्माना लगाने का अधिकार है।

एनपीपीए ऐसे तय करती है किसी दवा की कीमत

जब कोई कंपनी नई दवा लाती है, चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। उस कंपोजिशन की दवा जो पहले से बाजार में है, पांच कंपनियों की औसत कीमत निकालकर नई कंपनी की दवा की कीमत तय की जाती है। कुछ कंपनियां एनपीपीए को बताती ही नहीं हैं, और अपनी मर्जी से कीमत तय कर देती हैं। इसके अलावा नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशिएल मेडिसिन (एनईएलएम) की कीमत भी एनपीपीए तय करती है। एनपीपीए का कहना है कि दवाओं की कीमत तय या कैपिंग करके हर वर्ष उपभोक्ताओं का 12 हजार 447 करोड़ रुपए बचाया जाता है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
जब कोई कंपनी नई दवा लाती है चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। (प्रतीकात्मक)


https://ift.tt/3blCMyM

Comments

Popular Posts

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे। दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं। यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था। इसके त...