Skip to main content

किसी एक वैक्सीन के हमेशा प्रभावी रहने पर संदेह है इसलिए प्रोटीन, मृत वायरस और नाक से स्प्रे वाली वैक्सीन भी बना रहे वैज्ञानिक

कोरोनावायरस संकट के बीच 30 से ज्यादा वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल चल रहा है। वे वैज्ञानिक परीक्षणों के कठिन चरणों से गुजर रही हैं। द न्यूयॉर्क टाइम्स को मिली जानकारी के मुताबिक, 88 वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। इनमें से 67 वैक्सीन 2021 के अंत तक क्लीनिकल ट्रायल के स्तर पर आने की उम्मीद है।

दूसरी तरफ वैज्ञानिकों को वैक्सीन के प्रभाव को लेकर भी चिंता है। ब्राजील के साओ पाउलो में वैक्सीन शोधकर्ता लुसियाना लेइट कहते हैं, ‘हमें अभी भी पता नहीं है कि सुरक्षा के लिए किस तरह की इम्युनिटी महत्वपूर्ण होगी।’

जॉर्जिया यूनिवर्सिटी में इम्युनोलॉजी के डायरेक्टर टेड रॉस कहते हैं- ‘चिंता इस बात की है कि पहली वैक्सीन बाद में भी उतनी ही प्रभावी रहेगी या नहीं। ऐसे में अलग-अलग रणनीति पर काम करने की जरूरत है।’ कई कंपनियां आश्चर्यजनक रूप से कुछ ऐसी वैक्सीन पर दांव लगा रही है, जो उम्मीद जगाती हैं।

अमेरिका में एक ऐसी वैक्सीन पर काम हो रहा है, जो शरीर को संक्रमण रोकने के लिए तैयार करेगी। इसमें स्पाइक नाम का प्रोटीन डेवलप होगा, जो कोरोनावायरस को कवर कर रोक देगा। यह एंटीबॉडी भी बनाएगी। वहीं, एपिविक्स कोरोनोवायरस के कई हिस्सों से बने टीकों का परीक्षण कर रही है, जिससे पता लगा सके कि उसे कैसे रोक सकते हैं।

नैनोपार्टिकल वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के लिए वॉलंटियर भर्ती

एपिविक्स के सीईओ एनी डी ग्रोट कहते हैं- ‘यह सुरक्षा की दूसरी लेयर है, जो एंटीबॉडी से बेहतर काम कर सकती है।’ डॉ. वेस्लर के सहयोगी नील किंग की स्टार्ट-अप आइकोसेवैक्स इस साल नैनोपार्टिकल वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल करेगी। इनके अलावा अमेरिका के वॉल्टर रीड आर्मी इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता भी नैनोपार्टिकल वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के लिए वॉलंटियर भर्ती कर रहे हैं। इस साल के अंत तक इसका ट्रायल होगा।'

नाक से स्प्रे वाली वैक्सीन

न्यूयॉर्क की कोडाजेनिक्स नाक से स्प्रे वाली वैक्सीन बना रही है। इसके शोधकर्ता कोरोनावायरस के सिंथेटिक संस्करण पर प्रयोग कर रहे हैं। इसका पहला ट्रायल सितंबर में होगा। उनके मुताबिक यह इन्फ्लूएंजा के फ्लुविस्ट की तरह प्रभावी हो सकती है, क्योंकि वायरस सांस के जरिए ही शरीर में जाता है।

चीनः ट्रायल पूरा होने से पहले 2 वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी
चीन में कोरोनावैक वैक्सीन के इमरजेंसी में इस्तेमाल को मंजूरी दे दी गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसका अभी तक ट्रायल भी पूरा नहीं हुआ है। इसका इस्तेमाल एक कार्यक्रम के भाग के रूप में किया जा रहा है। यह ज्यादा जोखिम वाले समूह जैसे मेडिकल, नर्सिंग स्टाफ और उन लोगों को लगाई जाएगी, जिन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
न्यूयॉर्क टाइम्स को मिली जानकारी के मुताबिक 88 वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। इनमें से 67 वैक्सीन 2021 के अंत तक क्लीनिकल ट्रायल के स्तर पर आने की उम्मीद है। 


https://ift.tt/3lv43TS

Comments

Popular Posts

सेठ ने फ्लाइट से वापस बुलवाया था, दूसरी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट हो गया तो भगा दिया, तीन दिन स्टेशन पर भूखे पड़े रहे

सेठ को काम शुरू करना था तो उन्होंने हमें फ्लाइट से मेंगलुरू बुलवाया था। वहां पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अब दूसरी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट हो गया है, इसलिए तुम्हारी जरूरत नहीं। हमने वापस जाने के लिए किराया देने का कहा तो बोले, तुम्हें पहले ही फ्लाइट से बुलवाया है, मेरा काफी पैसा खर्च हो गया। अब जाने का किराया नहीं दे सकता। अपने हिसाब से निकल जाओ। इसके बाद हम बड़ी मुश्किल से मुंबई तक आए। मुंबई स्टेशन पर तीन दिन तक पड़े रहे क्योंकि वापस जाने का किराया ही नहीं था। दो दिन से खाना नहीं खाया था। कृष्णकांत धुरिया नाम के ऑटो चालक ने खाना खिलवाया। उन्हीं के मोबाइल पर रिश्तेदार से पांच सौ रुपए डलवाए, तब कहीं जाकर गोरखपुर के लिए निकल पा रहे हैं। यह दास्तां गोरखपुर से मेंगलुरू गए उन आठ मजदूरों की है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक स्टेशन पर तीन दिनों तक फंसे रहे। तीन दिन भूखे थे। इन लोगों का हाल देखकर ऑटो चालक कृष्णकांत ने बात की और इन्हें तिलक नगर में शिव भोजन में खिलाने ले गया। वहां 5 रुपए में खाना मिलता है। वहां 5 रुपए में इन लोगों को एक की बजाए दो-दो प्लेट खाना दिया गया। फिर कुशीनगर ट्रेन से ये ...

इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद में कुरआन के साथ गीता, रामायण और वेदों की ऋचाएं भी पढ़ाई जा रहीं

यूपी के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवों के लिए पहचाना जाता है। आम तौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरआन की आयतें, वेदों की ऋचाएं और गीता-रामायण के श्लोकों का उच्चारण करते मिल जाएंगे। दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य कई धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है। दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है। इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती हैं। यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी बताते हैं कि यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं। यहां शिक्षा के 34 विभाग हैं, 4 हजार से अधिक स्टूडेंट्स हर साल अध्ययन करते हैं। उस्मानी बताते हैं कि 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था। इसके त...