3 नवंबर को मप्र उपचुनाव के लिए मतदान है। प्रत्याशी और पार्टियों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। लोग यह जानना चाहते है कि इस समय कहां-कौन मजबूत हैं। भास्कर ने चुनावी क्षेत्रों की जमीनी हकीकत का एनालिसिस किया और पता किया कि इन 28 सीटों पर किस पार्टी का प्रत्याशी मजबूत है और किसे कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। फिलहाल जो समीकरण हैं, उनके मुताबिक, 13 सीटों पर भाजपा मजबूत नजर आ रही है। 10 पर कांग्रेस की बढ़त है और 5 सीटों पर कड़ी टक्कर है।
ग्वालियर-9 सीटें
अशोकनगर: भाजपा के जज्जी फंसते नजर आ रहे, आत्मविश्वास में हैं कांग्रेस की आशा
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए जजपाल सिंह जज्जी इस चुनाव में फंसते हुए नजर आ रहे हैं। वैसे ही निजी कारणों से विरोध झेल रहे हैं। साथ में बीजेपी में भीतरघात के कारण इन्हें दोहरा नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस की आशा दोहरे पूरे आत्मविश्वास से मैदान में हैं। दलबदल को लेकर इलाके में बड़ा मुद्दा बन रहा है।
भांडेर: महेंद्र बौद्ध फैक्टर को छोड़ कांग्रेस के फूलसिंह बरैया की मजबूत स्थिति
भाजपा की रक्षा सिरोनिया के मुकाबले कांग्रेस के फूलसिंह बरैया की चुनावी रणनीति ज्यादा कारगर दिखाई दे रही है। दलित वोटों के साथ मुस्लिम वोट भी एकजुट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। रक्षा के पति के व्यवहार को लेकर एक वर्ग में नाराजगी है। पार्टी को डर है कि इसका असर वोटिंग में न दिखने लगे इसलिए पार्टी छोटे स्तर तक मीटिंग कर रही है। हालांकि, कांग्रेस को सिर्फ पूर्व मंत्री महेंद्र बौद्ध के चुनाव लड़ने से चिंता है, क्योंकि पूर्व मंत्री होने के साथ वह अच्छा जनाधार भी रखते हैं।
पोहरी: मुख्यमंत्री की चार सभाओं के बाद भाजपा प्रत्याशी ने बनाई बढ़त
भाजपा ने यहां जातिगत समीकरण देखते हुए सुरेश धाकड़ को उतारा है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी इसी समाज के हैं, लिहाजा उन्होंने समाज के प्रत्याशी को जितवाने के लिए चार सभाएं ले ली हैं। इससे पार्टी राहत महसूस कर रही है तो कांग्रेस मुश्किल में दिख रही है। यहां कांग्रेस ने ब्राह्मण कैंडिडेट हरिवल्लभ शुक्ला को टिकट दिया है। इस कारण ठाकुर वोट कांग्रेस के हाथ से छिटक सकता है।
करैरा: दलबदल मुद्दे के बीच तीन बार हारे कांग्रेस के प्रागीलाल जाटव की बढ़त
इस सीट पर मुकाबला कड़ा है। वोटर के मिजाज का ताजा इनपुट मिलने के बाद भाजपा काे नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ सकती है। कांग्रेस यहां सहानुभूति की नाव पर सवार होना चाहती है। दरअसल, बसपा के टिकट पर तीन बार चुनाव हार चुके प्रागीलाल जाटव को उसने इसी मकसद से उतारा है। इन्हें सहानुभूति मिलती भी दिख रही है। भाजपा से जसवंत जाटव प्रत्याशी हैं। अनुसूचित जाति की सीट पर दलबदल भी मुद्दा बनता जा रहा है।
मुंगावली: कांग्रेस बेहतर, सांसद के कारण भाजपा प्रत्याशी मुश्किल में
कांग्रेस से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके ब्रजेंद्र सिंह यादव अब भाजपा से भाग्य आजमा रहे हैं। यादव बहुल सीट पर उनका मुकाबला कांग्रेस के कन्हई राम लोधी से है। बूथ मैनेजमेंट भाजपा का ठीक चल रहा है, लेकिन निजी कारणों से ब्रजेंद्र सिंह मुश्किल में फंस गए हैं। कारण हैं सांसद डॉ. केपी यादव। उन्हें दिल से साथ ला पाने में वे अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। भाजपा दोनों में तालमेल बैठा दे, तभी समीकरण बदल पाएंगे।
बमोरी: कांग्रेस प्रत्याशी अकेले पड़े, भाजपा प्रत्याशी की स्थिति मजबूत
ताजा समीकरणों से भाजपा प्रत्याशी और मंत्री महेंद्रसिंह सिसौदिया के समर्थक उत्साहित हैं। वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे और यहां सामंजस्य बैठाने में कामयाब होते दिख रहे हैं। उनका मुकाबला निर्दलीय चुनाव हार चुके कांग्रेस के केएल अग्रवाल से है, जो सिंधिया के बुलावे पर ही कांग्रेस में आए थे। अग्रवाल अब कांग्रेस में अकेले पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
ग्वालियर पूर्व: भाजपा के मुन्ना को कांग्रेस के सिकरवार की कड़ी टक्कर
कांग्रेस से भाजपा में आए मुन्नालाल गोयल के सामने कांग्रेस ने सतीश सिकरवार को उतारा है जिससे मुकाबला कड़ा हो गया है। गोयल सरल स्वभाव, कथित आखिरी चुनाव की सहानुभूति और जातिगत समीकरण के बूते मैदान में है। सिकरवार के लिए ठाकुर वर्ग को छोड़ अन्य वोटर्स को साधना मुश्किल दिख रहा है। हालांकि उन्हें पिछला चुनाव हारने की सहानुभूति मिल सकती है।
ग्वालियर: भाजपा मजबूत, कांग्रेस को मुश्किल से मिला था प्रत्याशी
कांग्रेस शुरू से ही चिंताजनक स्थिति में है, क्योंकि यहां उम्मीदवार ढूंढ़ना तक मुश्किल हो गया था। आखिर में सुनील शर्मा को टिकट दिया गया। भाजपा से मंत्री प्रद्युम्न तोमर उम्मीदवार हैं। कमलनाथ सरकार के दौरान तोमर जिस अंदाज में लोगों के बीच दौरे करते रहे हैं, वह भी लोगों को याद है। सिंधिया जिस तरह से ‘अपना चुनाव’ बताकर ग्वालियर के लोगों से मिल रहे हैं, उसका फायदा प्रद्युम्न को हो सकता है।
डबरा: ‘आइटम’ से कांग्रेस को हो रहा नुकसान, इमरती देवी मजबूत
कमलनाथ के ‘आइटम’ वाले बयान ने यहां की चुनावी तस्वीर ही बदल दी। कांग्रेस से भाजपा में आई मंत्री इमरती देवी ने इसे मुद्दा बना दिया है। जो कांग्रेस गद्दार और दलबदल के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर उठा रही थी, वह अब बैकफुट पर है। इमरती अपने ही अंदाज में इस मामले को उठाते हुए लोगों के बीच पहुंच रही है। कांग्रेस से उम्मीदवार सुरेश राजे कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं भर सके। स्थानीय नेता महसूस कर रहे हैं कि नाथ के बयान का फायदा भाजपा प्रत्याशी को होगा।
चंबल- 7 सीटें
मुरैना: दलित वोटबैंक और ब्राह्मण उम्मीदवार से बसपा के राजौरिया मजबूत
यहां बसपा के उम्मीदवार रामप्रकाश राजौरिया के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। व्यापारिक पृष्ठभूमि वाले राजौरिया की छवि अच्छी है। इस सीट पर कांग्रेस से भाजपा में आए रघुराज कंसाना के सामने कांग्रेस ने राकेश मावई को उतारा है। ऐसे में गुर्जर वोट बंट सकता है। यह बात कांग्रेस और भाजपा दोनों को परेशान कर रही है, क्योंकि ब्राह्मण उम्मीदवार राजौरिया बसपा से उतरे हैं, जिसे बड़ी संख्या में दलित वोट भी मिलते आए हैं।
दिमनी: जातिगत समीकरण से भाजपा मुश्किल में, कांग्रेस फिलहाल यहां भारी
इस सीट पर जातिगत समीकरण हावी है। इससे भाजपा की मुश्किल बढ़ गई है। भाजपा के प्रत्याशी गिर्राज दंडोतिया के लिए ठाकुर वोट बैंक सबसे बड़ी चुनौती हैं, जो कांग्रेस प्रत्याशी रवींद्र तोमर के लिए एकजुट हो गए हैं। दलित वोट भी कांग्रेस तरफ जाता दिख रहा है तो दंडोतिया को ब्राह्मण वोटर्स को साधना ही मुश्किल हो रहा है। इसे देखते हुए भाजपा नई रणनीति बनाकर माहौल बदलने में जुटी है, क्योंकि 15 महीने के कार्यकाल में दंडोतिया इलाके के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।
सुमावली: गुर्जरों के दम पर भाजपा के एंदल सिंह कंसाना भारी
यहां दोनों ही पार्टियां दलबदल फैक्टर का सामना कर रही हैं और दोनों को भितरघात का डर है। कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री एंदल सिंह कंसाना के सामने कांग्रेस ने भाजपा से आए अजबसिंह कुशवाह को उतारा है। स्थिति दिलचस्प बन गई है, लेकिन यहां गुर्जर वोट बैंक निर्णायक माना जाता है। कंसाना गुर्जर हैं और उन्हें एक बार फिर इसका फायदा मिलता दिख रहा है। ऐसे में कांग्रेस को यहां चिंता सता रही है।
जौरा: कांग्रेस का नया चेहरा भाजपा के सूबेदार को दे रहा कड़ी टक्कर
पूर्व विधायक बनवारीलाल शर्मा के निधन से खाली हुई सीट पर कांटे का मुकाबला है। यहां भाजपा के पूर्व विधायक सूबेदारसिंह के सामने कांग्रेस ने नए चेहरे पंकज उपाध्याय को उतारकर चौंका दिया था। हालांकि, इसी फैसले ने अब कांग्रेस को मुकाबले में बराबरी पर ला खड़ा किया है। सूबेदार को भाजपा संगठन के लेवल पर भी दिक्कत आ रही है, जो उनकी मुश्किलें बढ़ा रही हैं। जातिगत समीकरण को भी पंकज अच्छे से मैनेज करने में सफल होते दिख रहे हैं।
अंबाह: निर्दलीय ने भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ाईं, कांग्रेस फायदे में
यहां एक निर्दलीय उम्मीदवार अभिनव छारी ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। सखवार बहुल इस सीट पर बसपा से आए सत्यप्रकाश सखवार को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाकर जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की है। सामने बीजेपी के कमलेश जाटव हैं, जिन्हें भितरघात से नहीं, बल्कि बगावत से खतरा है। सपा के उम्मीदवार पूर्व विधायक बंसीलाल जाटव ने भाजपा को समर्थन कर दिया है, लेकिन निर्दलीय छारी के कारण राह आसान नहीं हैं।
मेहगांव: भाजपा की रणनीति ने कांग्रेस को पीछे छोड़ा
यहां से हेमंत कटारे को कांग्रेस ने देरी से टिकट दिया। इस कारण वे प्रचार में पिछड़ गए थे, लेकिन अब हालात बदले हैं। वे मुकाबले में आ गए हैं। यहां ठाकुर और ब्राह्मण वोट निर्णायक माने जाते हैं। भाजपा से ओपीएस भदौरिया भी इसी फैक्टर के आधार पर आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन मुकाबला दिलचस्प हो गया है। ब्राह्मण वोटर ज्यादा हैं, लेकिन भाजपा की संगठन स्तर की रणनीति ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल रखा है।
गोहद: भाजपा मजबूत लेकिन जिसने 84 गांवों को साध लिया जीत उसी की होगी
इस सीट पर जीत किसकी होगी, यह तय करेगा ठाकुर बहुल 84 गांवों का रूख। कांग्रेस के पूर्व मंत्री गोविंद सिंह इसी समीकरण को वोट में बदलने के लिए लगे हैं। अगर वो ऐसा कर पाए तो कांग्रेस प्रत्याशी मेवाराम जाटव को फायदा हो सकता है। कांग्रेस से भाजपा में आए रणवीर जाटव सहित पार्टी भी 84 गांव के फैक्टर पर काम कर रही है। पार्टी का संगठन भी यहां मजबूत है। ऐसे में फिलहाल यहां भाजपा प्रत्याशी भारी है।
मालवा-5 सीटें
हाटपीपल्या: मुख्यमंत्री की सभा के बाद मनोज चौधरी भारी हो गए
कांग्रेस से भाजपा में आए मनोज चौधरी की स्थिति दलबदल फैक्टर के कारण कुछ दिन पहले तक कमजोर थी, लेकिन अब वह भारी हो गए हैं। चार दिन पहले हुई मुख्यमंत्री की रैली के बाद माहौल बदल गया। संघ भी साथ खड़ा है। पिछले चुनाव में मनोज से हारे तत्कालीन मंत्री दीपक जोशी और उनके समर्थक मन से नहीं जुड़े हैं। यहां सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति, खाती, राजपूत, पाटीदार और सेंधव समाज निर्णायक माने जाते हैं।
पूर्व विधायक राजेंद्रसिंह बघेल के बेटे राजवीर सिंह कांग्रेस से उम्मीदवार हैं। अगले कुछ दिनों में यदि कमलनाथ या अन्य बड़े नेता की सभा होती है तो नए समीकरण बन सकते हैं। मनोज और राजवीर का देहाती जनता से रू-ब-रू होने का तरीका भी इस उपचुनाव में बड़ी भूमिका निभाने वाला है।
सांवेर: कांटे का मुकाबला, मुख्यमंत्री ने सिलावट के लिए पूरी ताकत लगाई
इस सीट पर पूरे प्रदेश की निगाहें हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री रहे तुलसी सिलावट को जिताने और हराने में दिग्गज लगे हुए हैं। फिलहाल यहां कांटे की टक्कर दिख रही है। भाजपा को इस बात का अहसास है, इसीलिए अब तक यहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पांच सभाएं तो सिंधिया की तीन सभाएं हो चुकी हैं। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी है, इसलिए प्रेमचंद गुड्डू के समर्थन में कमलनाथ दो सभाएं कर चुके हैं।
तुलसी सिलावट को हराने के लिए कांग्रेस में मंत्री रहे जीतू पटवारी महीनेभर से इलाके में डेरा डाले हुए हैं। भाजपा के लिए यह अच्छा है कि पिछले चुनाव में प्रत्याशी रहे राजेश सोनकर पूरी तरह सिलावट के समर्थन में आ गए हैं, क्योंकि पार्टी ने समय रहते ही उन्हें जिलाध्यक्ष का पद नवाज दिया था।
बदनावर: कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला, बावजूद भाजपा यहां मजबूत
शुरुआती दौर में राजवर्धनसिंह दत्तीगांव एकतरफा नजर आ रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे चुनावी पारा चढ़ता गया, कांग्रेस के कमल पटेल मुकाबले में आ गए। हालांकि, मजबूत यहां भाजपा के दत्तीगांव ही हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए राजवर्धन सिंह सिंधिया के नजदीकी हैं। पिछली बार इनकी जीत का अंतर 41 हजार से ज्यादा था। कांग्रेस को यहां प्रत्याशी ढूंढ़ने में ही जद्दोजहद करनी पड़ी। पहले युवा नेता अभिषेक सिंह को टिकट दे दिया था, लेकिन भारी विरोध और पार्टी को मिले इनपुट के बाद फैसला बदलना पड़ा। वरिष्ठ नेता कमल पटेल को उतारा गया।
सुवासरा: कांग्रेस प्रत्याशी को करना पड़ रहा संघर्ष
यहां भाजपा के हरदीप सिंह डंग मजबूत स्थिति में हैं। डंग की छवि मिलनसार नेता के रूप में है। इनका पूरा जीवन राजनीति में बीता। सरपंच से शुरुआत की थी, जिस कारण जमीनी पकड़ मजबूत है। कांग्रेस के राकेश पाटीदार को यहां भारी संघर्ष करना पड़ रहा है। किसान आंदोलन के दौरान हुई आगजनी के लिए भी पोरवाल समाज इनसे खासा नाराज है।
आगर: ऊंटवाल को सहानुभूति मिलती नहीं दिख रही, कांग्रेस के विपिन मजबूत
भाजपा के मनोज ऊंटवाल को यहां संघर्ष करना पड़ रहा है। विधायक पिता मनोहर ऊंटवाल के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर बेटे को सहानुभूति के वोट मिलेंगे, यह मानकर भाजपा ने टिकट दिया था, लेकिन अब ऐसा लग नहीं रहा है। मनोज की जमीनी सक्रियता कभी रही नहीं है, इस कारण उन्हें कदम-कदम पर मुश्किलें आ रही हैं। कांग्रेस के विपिन वानखेड़े का लगातार संपर्क उनकी राह आसान बना रहा है।
निमाड़- 2 सीटें
नेपानगर: भाजपा प्रत्याशी से नाराजगी, कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति बेहतर
कांग्रेस से दो बार चुनाव हार चुके रामकिशन पटेल की स्थिति मजबूत दिख रही है। विधायक पद से इस्तीफा देने के कारण भाजपा में आई सुमित्रा कास्डेकर से लोग नाराज दिख रहे हैं। यहां दोनों प्रत्याशी कोरकू समाज के हैं और ये ही जीत-हार तय करते हैं। लोगों को यह भी शिकायत है कि समस्याओं को लेकर जब सुमित्रा को फोन लगाया जाता है तो कोई दूसरा व्यक्ति उठाता है।
रामकिशन दो बार हारे हैं। इन्हें सहानुभूति का फायदा भी मिल सकता है। 2018 के चुनाव में सुमित्रा से हारी भाजपा की मंजू दादू भी दिखावे के लिए ही साथ दिख रही हैं। कांग्रेस का अगर बूथ मैनेजमेंट पक्का रहा तो भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
मांधाता: कांग्रेस की स्थिति मजबूत, भाजपा समीकरण बदलने में जुटी
भाजपा प्रत्याशी नारायण पटेल ने 2018 के चुनाव में 1236 वोट से जीत हासिल की थी। इस बार उनके सामने कांग्रेस के राजनारायण के बेटे उत्तम पाल सिंह मैदान में हैं, जो इस समय मजबूत नजर आ रहे हैं। यहां भाजपा को पसीना बहाना पड़ रहा है। शिवराज सिंह चौहान 29 अक्टूबर चौथी सभा करेंगे। सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर भी सभाएं कर चुके हैं।
लंबे समय से टिकट की उम्मीद में बैठे भाजपा के संतोष राठौर, नरेंद्र तोमर भी पार्टी के साथ खड़े नहीं दिख रहे हैं। 15 साल से सत्ता से बाहर रहने के बावजूद राजनारायण सिंह का गांव-गांव में संपर्क रहा है। जिसका फायदा उनके बेटे को इस चुनाव में मिल सकता है।
भोपाल- 2 सीटें
ब्यावरा: कांग्रेस की जमीनी पकड़ कमजोर, भाजपा के नारायण पवार की अच्छी स्थिति
कांग्रेस के गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई इस सीट पर भाजपा अच्छी स्थिति में है। भाजपा प्रत्याशी नारायण पवार 2018 में एक हजार से भी कम वोटों से हारे थे, लेकिन उनका सामना इस बार कांग्रेस के ऐसे प्रत्याशी रामचंद्र दांगी से है, जो जमीनी पकड़ के मामले पीछे हैं। भाजपा संगठन यहां पूरी मुस्तैदी से लगा हुआ है, इसके मुकाबले कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट कमजोर दिख रहा है।
सांची: भाजपा के प्रभुराम मजबूत, कांग्रेस प्रत्याशी को पहचान का संकट
कांग्रेस से भाजपा में आए प्रभुराम चौधरी कांग्रेस के मदन चौधरी के मुकाबले आगे नजर आ रहे हैं। प्रभुराम के पिछले कुछ काम और उनका व्यक्तिगत संपर्क इसमें अहम भूमिका निभा रहा है। दूसरी तरफ दशकों बाद यह पहला मौका होगा जब शेजवार परिवार सांची के चुनाव में पूरी तरह बाहर है। इससे भाजपा को भीतरघात का खतरा है और कांग्रेस इसे भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन, भाजपा हाईकमान के सख्त रवैये के बाद भीतरघातियों के तेवर ढीले पड़ते दिख रहे हैं।
बुंदेलखंड- 2 सीटें
सुरखी: भाजपा की रणनीति से गोविंद सिंह राजपूत मजबूत स्थिति में
यहां कांग्रेस प्रत्याशी पारूल साहू को कांग्रेस से भाजपा में आए गोविंद राजपूत टक्कर दे रहे हैं। कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा ने अंदरूनी रणनीति बनाई है, जिसके चलते समीकरण तेजी से राजपूत के पक्ष में होते दिख रहे हैं। भूपेंद्रसिंह को जिम्मेदारी देते हुए भाजपा ने कह दिया कि यदि यहां पार्टी हारी तो यह आपकी हार मानी जाएगी। 2013 में मात्र 141 वोट से पारुल साहू जीती थीं। उनके कार्यकाल से कम लोग ही संतुष्ट थे।
मलहरा: कांग्रेस मजबूत, लोधी वोट करेगा जीत-हार का फैसला
कांग्रेस की साध्वी रामसिया भारती की स्थिति यहां मजबूत नजर आ रही है। पार्टी बदलने के कारण भाजपा के प्रद्युम्न सिंह लोधी से समाज के ही लोग नाराज दिख रहे हैं। साध्वी छह साल से भागवत कथा कर रही हैं, जिस कारण क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत है। 5 हजार लोगों ने साध्वी से दीक्षा ली है जो उनके पक्के वोटर होंगे।
महाकौशल- 1 सीट
अनूपपुर: भाजपा के बिसाहूलाल की स्थिति मजबूत
भाजपा के मंत्री बिसाहूलाल साहू की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस से यहां विश्वनाथ मैदान में हैं। दोनों प्रत्याशी गोंड समाज से हैं। इस सीट पर गोंड और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं।
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