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‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी बातों से निवेश को पुनर्जीवित नहीं कर सकते, यह वैश्विक निवेशकों को दूर धकेलेगा

भारत में व्यवसायों और उपभोक्ताओं के आगे बढ़ने की इच्छा और प्रयासों की अहमियत कहीं और की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। भारत एक वर्क इन प्रोग्रेस देश है, जहां हर नया संस्करण पिछली की तुलना में बेहतर रहा है। भारत अपने आप में 1.4 अरब सपनों और आकांक्षाओं का मेल है। ऐसे में सरकार की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि निष्पक्ष शासन प्रदान करना और सबकी प्रगति का रास्ता बनाना उसकी ज़िम्मेदारी है ताकि तरक्की की संभावनाएं कभी खत्म न हों। एक अच्छी आर्थिक बुनियाद की सुंदरता यह होती है कि सभी हितधारक (उपभोक्ता, व्यवसाय और सरकार) भले ही भिन्न-भिन्न उद्देश्यों के लिए काम करते हों परंतु एक-दूसरे पर निर्भरता उन्हें एक टीम बनकर काम करने के लिए मजबूर करती है।

एक राष्ट्र के रूप में हमने 1991 में अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने का फैसला किया था। इधर हाल ही में लोकल के लिए वोकल और ‘आत्मनिर्भर इकोनॉमी’ पर मुखर बयानबाजी ने हमें मूल्यांकन करने के लिए मजबूर किया है और क्योंकि यह पहली बार है जब हम दुनिया को हम अपनी अर्थव्यवस्था के बारे में ऐसा संदेश भेज रहे हैं जो वैश्विक खिलाड़ियों के लिए पहले के समान खुली नहीं है। इस तरह हम अपने आप को 2.9 ट्रिलियन डॉलर (वर्तमान जीडीपी का आकार) तक सीमित अर्थव्यवस्था बना रहे हैं। हमें देश की अन्य आर्थिक नीतियों पर भी गौर करना चाहिए जो पिछले 6 वर्षों में अमल में लाई गई हैं।

मेक इन इंडिया उचित उद्देश्य से शुरू की गई थी। हम लंबे समय से भारत की जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने और इसे 25% के करीब पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं, जो कि 2019 के आंकड़ों में लगभग 13.7% है। एक ओर मेक इन इंडिया ने भारत में निर्माण करने के लिए वैश्विक दिग्गजों के लिए दरवाजे खोले तो इससे उलट अब वोकल फॉर लोकल पर ज़ोर देने का मतलब है बिना विदेशी निर्भरता के अपने लिए सब कुछ बनाना। यह मुक्त व्यापार जगत के लिए भारत के संदेश को कमजोर कर रही है।

जब हम भारत को एक मैन्यूफ़ैक्चरिंग डेस्टिनेशन के रूप में प्रमोट कर रहे थे, तब हमें व्यापार करने को आसान बनाना था और करों को तर्कसंगत करने पर भी काम करने की जरूरत थी। अनुबंध लागू करने के मामले में 2019 में भारत विश्व के 190 देशों में 163 वें स्थान पर, संपत्ति के पंजीकरण में 154वें, और करों का भुगतान करने में 115वें स्थान पर रहा।

कर व्यवस्था को सरल बनाने के नाकाफ़ी प्रयासों ने मान ट्रक्स, जनरल मोटर्स, हार्ले डेविडसन जैसे वैश्विक विनिर्माण खिलाड़ियों को अपना काम यहां से बंद करने और भारतीय बाजारों से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया। नीतियां तब परिणाम लाती हैं जब एक समान लागू की जाएं। एक क्षेत्र में लचीलापन और दूसरे में कठोरता हमेशा मिश्रित परिणाम लाएगी, जैसा कि हम देख रहे हैं।

अनियमित आर्थिक और राजनीतिक नीतियों ने एक इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में भारत की चमक को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि जीडीपी में विनिर्माण का हिस्सा घटकर 2019 में 13.7% पर आ गया जबकि 2015 में जब मेक इन इंडिया का शुभारंभ तब यह 15.6% था।

केवल भारतीय जरूरतों (वर्तमान में जीडीपी का आकर 2.9 ट्रिलियन यूएस डॉलर) पर ध्यान केंद्रित कर हम दो काम कर रहे हैं : पहला, जब हम ही अपनी जरूरतों के लिए उत्पादन करेंगे तो ऐसा ही दूसरे देश भी कर सकते हैं - इस तरह क्या हम दूसरे देशों में व्यापार कर रहे अपने निर्माताओं के हितों को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित नहीं कर रहे हैं? वे अन्य देशों में विनिर्माण करते समय ऐसे ही प्रतिरोध का सामना करेंगे। दूसरा, हम दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य, कम लागत पर विनिर्माण करने वाले देशों को मेगा अवसर उपहार में दे रहे हैं। अप्रैल 2018 और अगस्त 2019 के बीच चीन से बाहर जाने वाले 56 व्यवसायों में से केवल 3 भारत में आए और शेष वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड और इंडोनेशिया में स्थानांतरित हो गए (नोमुरा रिपोर्ट के अनुसार)।

किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए उपभोग अंतिम लक्ष्य है और मूल्य सृजन, बचत और निवेश ऐसे स्तंभ हैं जो सही मायने में आर्थिक विकास को गति देते हैं और वैल्यू क्रिएट करते हैं। पिछले दो वर्षों से हाउसहोल्ड और बिज़नेस द्वारा निवेश निरंतर कम हुआ है। कंपनियां 70% से कम क्षमता पर काम कर रही हैं और पूंजी निवेश या नई नौकरियों के सृजन की आवश्यकता महसूस नहीं कर रही हैं।

कोविड के कारण सामने आए सरकारी प्रोत्साहन पैकेजों में भी यही भ्रम स्पष्ट झलकता है। भारत का प्रोत्साहन पैकेज क्रेडिट पर केंद्रित है, जबकि IMF के अनुसार यूएस और ब्राज़ील जैसे देशों ने जीडीपी के 11% और 12% का बड़ा वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज दिया, जबकि भारत ने महज़ 2%। क्रेडिट इस समय उपाय नहीं है। निवेश-खपत अपने सबसे कम स्तर पर है।

आज की दुनिया में वापसी की राह पर अकेले नहीं चल सकते। आज भारत का कद विशाल उपभोक्ता आधार के कारण है। विदेशी निर्माता भारत में प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता लाते हैं, जो घरेलू निर्माताओं को भी उत्कृष्ट बनाने में मदद करता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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गौरव वल्लभ, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।


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